Saturday, October 8, 2011

दरियादिली के शौक का इकरार बैठे

सितम कितने भी कर लो, हम नहीं करते बगावत हैं
कि हम दरियादिली के शौक का इकरार बैठे |


हमारी सादगी पे खुश हुए वो, मुस्कुरा कर के
बिना सोचे, बिना समझे, दुबारा वार कर बैठे |


फ़कत इतना समझते थे, हमारी एक है मंजिल
खबर क्या थी वो रस्ता और अख्तियार कर बैठे |


नहीं सोचा था हमने, इस कदर नफरत मिलेगी यूं
मिले तुमसे, तो अपनाकर तुम्ही से प्यार कर बैठे |


कहीं ये नफरतें तुझको फ़ना करके नहीं रख दें
हमारी दुश्मनी में खुद को तुम गद्दार कर बैठे |


अभी भी वक्त है, इस दिल में आकर फिर से बस जाओ
हुई जो देर, हम दरिया सबर का पार कर बैठे |

कि हम इंसान हैं, हमको भी होती है फिकर तेरी
फ़ना होने से पहले, तुझको दावेदार कर बैठे |


भटकती रूह की ख्वाहिश से किसको वास्ता रहता 
हमें तू याद कर, हम मौत का दीदार कर बैठे |